एक दफा वो याद है तुमको?
एक दफा कुछ कर गुज़रने का
जूनून सर पे चढ़ा. लाइन से तीन क्विज़ तेल करने के बाद मा बदौलत और उनके रूममेट ने प्रण
किया की जब तक अपनी इज्जत रिडीम ना कर लें, ताश के पत्तों को हाथ ना लगायेंगे. Techkriti
चल रही थी और हमने रोबोट्स की फुटबॉल प्रतियोगिता के लिए एक चमत्कारी रोबोट बनाने
का निर्णय लिया. दो दिनों के नाईटआउट, पत्तों के बलिदान और अथक प्रयास के बाद हृतिक
रोशन सी बॉडी वाला रोबोट इजाद किया. हमारे रोबोट को देखकर राइवल टीम के पसीने छूटते
नज़र आते थे और कुछ सुंदरी टाइप के रोबोट्स उसका intro लेने की फ़िराक में लग गए.
जैसे ही मैच स्टार्ट हुआ
और सामने वाला मरगिल्ला रोबोट हमारे गोल की तरफ बड़ा, हमने अपने रोबोट का पावर
स्विच दबाया. नॉब को और उमेठा, और फिर पूरा उल्टा उमेठ दिया जब तक की वो स्विच
बोर्ड से निकलकर हमारे हाथ में ना आ गया. मुआ टस से मस न हुआ और हमारा प्यारा
हृतिक माताजी से बचपन में सुनी हुई कविता गाता हुआ सा प्रतीत हुआ ‘टेसू मेरा यहीं
अड़ा, खाने को मांगे दहीबड़ा’.
उस दिन शोरगुल से भरे
techkriti के मैच में रोने की बजाय जीवन में सबसे ज्यादा हंसी आई. आयोजकों ने दिल
बड़ा करके हमारे रोबोट को बेस्ट ड्रेस्ड रोबोट का ख़िताब प्रदान किया और हमने रात भर
पत्ते खेलकर इसे सेलिब्रेट किया.
कई सालों बाद फिर एक
forced नाईट आउट मारना पड़ा. देश, काल और परिस्थिति IITK से भिन्न थी और पांच दिनों
का नवजात बेटा सोने से इनकार कर रहा था. अपनी माँ को वो चार दिनों में इतना पस्त
कर चुका था की उसे रात को सँभालने का सौभाग्य मुझे प्रदान किया गया था. बच्चे के
डायपर बदलते और आँखे मलते याद आ गया वो IITK का वो समय जब नाईट आउट हंसी ख़ुशी मारा
करते थे. जीवन का तीसरा दशक दो साल पहले ही आगाज़ कर चुका था और जीवन इस कशमकश से
गुज़र रहा था की जवानी अभी बाकी है या वृद्धावस्था का आरंभ हो गया है. शरीर पर फैट
की सतहें बॉडी circumference को चार गुना कर चुकी थीं और सर पर बालों की डेंसिटी
चार से विभाजित.
सारी दौलत, सारी
ताकत
सारी दुनिया पर
हुकूमत
बस इतना सा ख़्वाब
है
धीरे धीरे हकीकत
सामने आई और IIT ने वो सिखाया जो आज तक का सबसे बड़ा सबक है. वहां रहकर समझ आया
‘बहुरत्ना वसुंधरा’ का अर्थ क्या होता है. भाई जिसको देखिये वही कमाल का
इंटेलीजेंट और टैलेंटेड. IIT के बाद कई और इम्तेहान दिए और कई संस्थानों के
दिग्गजों के साथ उठने बैठने का सौभाग्य मिला पर सच कहूं आज तक कहीं भी इतना
टैलेंटेड क्राउड नहीं देखा. अगर ठेठ भाषा में कहूं तो IIT ने अपनी औकात दिखा दी. समझ
आया की अपने अन्दर कुछ सुरखाब के पर नहीं लगे हैं, अगर जीवन में बाइज्जत सर्वाइव
करना है तो मेहनत करनी ही पड़ेगी.
इसके बाद सबसे प्रबल
मेमोरी रही IIT के चार सौ के बैच की उन बीस मोहतरमाओं की जिनमे से पांच के पीछे
सभी नटखट बालक भागा करते थे. एक बार किसी कन्या से बात कर लो तो सदियों तक फलसफे
चलते थे. अंतराग्नि के दौरान बाहर से कन्याएं आया करती थीं और IIT में वह बहार की
ऋतू मानी जाएगी. आज कई IITians की पत्नियाँ/गर्लफ्रेंड उन्ही चार दिनों की मेहरबानी
हैं. वैसे हम उन दिनों भी अपने ही झुण्ड में पाए जाते थे. एक कार्ल मार्क्स के
प्रकांड विद्वान मित्र कहा करते थे की सुंदरियों के सानिध्य के हिसाब से वर्ल्ड को
haves एवं have nots की श्रेणी में बांटा जा सकता है और हमारी किस्मत में have nots
को शुमार करना ही लिखा है.
उस वक़्त की दार्शनिक
चर्चाएँ जीवन के गूढ़ रहस्यों को भी चुटकी में आसान कर डालती थीं. ज्ञान, दर्शन और
टाइम पास तीनों में बकवास बहुत काम आती है. एक बार डिस्कवरी चैनल देखते हुए मित्रगण
बंदरों से अभिभूत हुए. एक स्वामी बन्दर दर्जनों बन्दारियों के झुण्ड को लेकर घूमा
करता है और लोग मन ही मन बंदरों से इर्षा कर बैठे. इस बात को सुनते ही हम उन्हें
धरती पर लाये और बोला अमां खुश रहो इंसान हो वरना उन दर्जन भर बंदरों में रह जाते जुसे
झुण्ड का मालिक थप्पड़ मारकर रुकसत कर दिया करता है. वैसे जीवन में किसी चीज़ का
मलाल नहीं रहा और कन्याएं न सही, हम फैज़ के इस शेर की तरह उनकी चर्चा से ही खुश हो
जाया करते थे:
क़फ़स उदास है
यारों सबा से कुछ तो कहो
कहीं तो बहरे
ख़ुदा, आज ज़िक्रे यार चले
एक बात याद करो तो कितनी
बातें लड़ी की तरह याद आती हैं. याद है वो बरसात की उमस जब पंखा सर पर ऊँघता हुआ
नज़र आता था, वो ज़ोरदार बारिश जो बंद होने का नाम ही नहीं लेती थी, वो असाइनमेंट
जिसे पूरे पांच मिनट में कॉपी कर लिया जाता था, वो xerox किये हुए नोट्स जो ऐन
मौके पर काम आते थे, वो mess का खाना जो किसी तरह निगलते ही बनता था, वो खटारा
साइकिल जिसने पूरे ४ साल वफ़ादार साथी की तरह साथ निभाया, वो ख़ुशी जो दोस्तों के
खुश होने पे यूँ ही चली आती थी, वो फोर्थ इयर के येल्लो पेज नोटिस जो नौकरियों का
सन्देशा लाते थे, वो गले में अटकती हुई टाई जो इंटरव्यू में पहली बार पहनी गयी थी,
वो फ्रेशेर्स नाईट, हॉल नाइट्स, दिवाली नाईट और मिट्टी के तालाब में लोटपोट कर
खेली हुई होली जब किसी को भी पहचानना तक मुश्किल था, वो आइडियाज ऑफ़ विसिटिंग
प्लेसेस, वो GPL, वो घर से आई हुई मिठाई, वो फ़ोन का इन्तेजार, वो PCO की लाइन और न
जाने और क्या भी. इसके साथ की याद आता है जूनून मूवीज का, फिटनेस का, स्पोर्ट्स
का, म्यूजिक का, quiz का, पढाई का, सपनों का, लाइब्रेरी में सोने का और कैंटीन की
maggi का. कितनी सारी चीज़ें IIT पहली बार अनुभव की गयीं पर उनका विवरण तो आमने
सामने की गुफ्तगू के लिए बचाकर रख लेते हैं.
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मारा ज़माने ने
असदुल्लाह खान तुम्हें
वो वलवले कहाँ वो
जवानी किधर गयी?
वैसे आपकी कृपा से सब ठीक
ठाक है. म्यूजिशियन बनने वाले आज बैंगलोर में सॉफ्टवेयर बना रहे हैं. अक्सर वे
नौकरी छोड़ने की बातें किया करते हैं पर अंत में वीकेंड पर पॉपकॉर्न खाते हुए मूवी
देखकर ही संतोष कर लेते हैं. भारत के असीम पिछड़े गाँव से आने वाले USA की सबसे
बढ़िया लैब में काम कर रहे हैं. उनकी पोशाक और goggles देखकर तो महसूस होता है की
हम ही गंवार रह गए. सदा आलस्य से घिरे रहने वाले अपनी कंपनी के मालिक हैं. जिन्हें
अपने भविष्य की ढेले भर भी चिंता नहीं थी वे आईआईएम अहमदाबाद से MBA कर बड़ी
कम्पनिओं का भविष्य संवार रहे हैं. अक्सर वे देश के हालात बदलने की भी चर्चा
करते हैं. मा बदौलत भी सरकारी नौकरी में गुज़र बसर कर रहे हैं और दादी अम्मा की
भाषानुसार कलेक्टर के पद पर विराजमान हैं. जीवन में जो मिला वो भी ठीक है, जो नहीं
मिला पाया उसका भी दुःख नहीं. सच ही तो है :
दुनिया जिसे कहते हैं, जादू का खिलौना है
मिल जाए तो मिट्टी है, खो जाए तो सोना है
दुनिया जिसे कहते हैं, जादू का खिलौना है
मिल जाए तो मिट्टी है, खो जाए तो सोना है
जीवन तो हमेशा ही थोड़ा है
थोड़े की जरूरत है की अवस्था में रहेगा पर जिंदगी ख़ूबसूरत है और हमारी खुशकिस्मती थी
की हम IITK में वो चार साल गुज़ार पाए. वहां बनाये दोस्त आज भी सबसे अज़ीज़ हैं और वहां
बिताए पल आज भी स्मृति की सुनहरी दहलीज़ पर सहेज कर रखे हैं. उन पलों की बहुत याद
आती है और अगर आज भी कभी वो निष्कपट, नटखट और बेमानी बकवास करने का दिल चाहे, तो
मेरे दरवाजे आप सब के लिए हमेशा खुले हैं.